आजाद बने रहने के लिए जरुरी है, अपना इतिहास याद रखना|

आजाद बने रहने के लिए जरुरी है, अपना इतिहास याद रखना|

भारतीय भोजपुरी समाज

भारतीय भोजपुरी समाज केवल भोजपुरी भाषा के लिए ही नहीं बल्कि उन सभी भाषाओं, बोलियों के लिए संघर्षरत संगठन है जो कहीं न कहीं वर्तमान समय में अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए संघर्षशील है। भारतीय भोजपुरी समाज जन जागरण एवं जन सहभागिता द्वारा भाषा की मर्यादा को बचाए रखने, उसको सजाने, सँवारने और उसकी गरिमा को बनाए रखने के लिए समर्पित संगठन हैl हमारा मानना है की भाषा ही मानव में मानवता भरने का काम करती है । हम इस संगठन के माध्यम से ये निवेदित करना चाहते हैं कि भारत ही नहीं बल्कि संसार के किसी भी भूभाग में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृ भाषा का सम्मान करना चाहिए व उसकी गरिमा को एक माँ की तरह देखना और सुरक्षित रखना चाहिए। भाषा का महत्व जीवन की दैनिक चुनौतियों में कई बार प्राथमिकता के क्रम में पिछड़ जाता है परंतु उपयुक्त वातावरण मिलने पर पुनः पल्लवित होने लगता है। इसका मात्र एक ही कारण है- और वो है किसी भी भाषा के स्वर्णिम इतिहास को याद रखना।

एक महत्त्वपूर्ण कहावत है कि - “आजाद बने रहने के लिए जरूरी है अपना इतिहास याद रखना” - भाषा का स्वर्णिम इतिहास ही जीवन मूल्यों की मान्यता का आधार है। भारतीय भोजपुरी समाज वर्ष भर अपने अलग कार्यक्रमों के माध्यम से निरंतर भाषा की प्रचार प्रसार और संवैधानिक अधिकार के लिए प्रयासरत रहता है। भौगोलिक विषमता और राजनैतिक उदासीनता कई बार हमारे मन में रिक्तता के भाव का प्रसार करती है परंतु हमारे तीज त्योहार एक सेतु के रूप में फिर से हम सभी के मन में एक नई ऊर्जा और जोश का संचार कर हमे हर कदम पर आगे बढ्ने का अवसर प्रदान करते हैं और अपनत्व का एहसास कराते हैं। भारतीय भोजपुरी समाज का मानना है की राजनीतिक विषमता के कारण अपनी मातृ भाषा की संपूर्णता और व्यापकता से आम जन अंजान है। आम जन अपनी भाषा के विविध रूप और गौरवशाली इतिहास का हिस्सा तो है परंतु उस संस्कृति के विराट स्वरुप से अनभिज्ञ हैं। भारतीय भोजपुरी समाज का मानना है कि एक ही राष्ट्र के दो अलग अलग भौगौलिक परिस्थितियों में रहने वाले लोग जब लगातार एक दूसरे के संपर्क में आएंगे तो उनके बीच संवाद का अवसर उत्पन्न होगा । संवाद एक दूसरे की संस्कृति और मनोदशा को समझने में सहायक होगा, जिसके बाद भारत की अलग अलग संस्कृतियों में रचे बसे लोगों के बीच अपनत्व का भाव बढ़ेगा । यह भाव अपनत्व को बढ़ावा देते हुए समग्र, सुंदर, भव्य और मजबूत भारत की कल्पना को साकार करेगा।

मानव जिस माध्यम से प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ है उस माध्यम का नाम भाषा है, संसार के अन्य प्राणियों के पास भी अपनी भाषाएं हैं परंतु विचार प्रदान करने वाली भाषा केवल मनुष्य के पास ही है। भाषा विचार विनिमय का एक महत्वपूर्ण साधन है, भाषा के बिना मनुष्य पशु के समान हैं, भाषा ही शिक्षा एवं ज्ञान का प्रमुख आधार है और भाषा के कारण ही मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बन सका है। भाषा का विस्तार एवं विकास मनुष्य का अपना ही विकास है। भाषा के द्वारा मानव अपने पूर्वजों के भाव विचार एवं अनुभव को सुरक्षित रख सकता है, भाषा के द्वारा किसी भी समाज का ज्ञान सुरक्षित रहता है, भाषा के द्वारा शारीरिक विकास बौद्धिक विकास एवं व्यक्तित्व का विकास होता है, भाषा ही भावनात्मक एकता राष्ट्रीय एकता एवं अपनत्त्व की भावनाओं का विकास करती है। गांधीजी के अनुसार व्यक्ति के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा का ज्ञान उतना ही आवश्यक है, जितना कि एक शिशु के शरीर के विकास के लिए माता का दूध। बर्ट के अनुसार भाषा विहीन व्यक्ति केवल बुद्धि विहीन ही नहीं रहते बल्कि भाव हीन भी हो जाते हैं । भाषा का सीधा संबंध संस्कार से होता है। हमारे पूर्वजों ने हमें जो संस्कार दिए हैं वही संस्कार हमारी भाषा के जरिए अगली पीढि़यों तक जाएंगे। इसे आगे बढ़ाते रहना ही हमारा कर्तव्य है।

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